झालावाड़ राजस्थान के पर्यटक स्थल

                          झालावाड़

ऐतिहासिक नगरी


सन् 1791 ए.डी. में कोटा स्टेट के दीवान राजपूत झाला जालिम सिंह ने घने जंगलों के बीच ‘छावनी उमेदपुरा’ नाम से एक सैनिक छावनी स्थापित की थी, । झालावाड़ को मराठों से बचाने के लिए इस छावनी को बनाया गया था। घने जंगलों में झाला जालिम सिंह अक्सर शिकार को आते थे और उन्हें यह जगह इतनी पसन्द थी कि उन्होंने यहाँ नगर बसाने का फैसला किया।अपनी समृद्ध प्राकृतिक संपदा से पहचाना जाने वाला ‘झालावाड़’ पहले ’बृजनगर’ कहलाता था। राजस्थान के अन्य शहरों से भिन्न झालावाड़ विपुल जल संपदा युक्त शहर है। गहरे नारंगी के फल के बग़ीचे झालावाड़ सौन्दर्य के साक्षी बनते हैं। झालावाड़ इन फलों के उत्पादन में देश में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान रखता है। राजपूत और मुगल काल की स्थापत्य काल से संवरे, किले और महल यहाँ की अपूर्व सांस्कृतिक विरासत हैं, जिसमे विपुल मंदिर और अन्य विख्यात आस्था स्थल भी सम्मिलित हैं।

                       

                                                         गढ़ पैलेस




हाड़ौती कला से परिपूर्ण यह गढ़ पैलेस, किलेनुमा महल है। शहर के बीचों बीच बना यह गढ़ पैलेस, चार मंज़िला बना है तथा झालावाड़ के अतीत की यादों को संजोए हुए है। यह झालावंश का भव्य महल था। इसके तीन कलात्मक द्वार हैं तथा इसके निर्माण में यूरोपियन ओपेरा शैली का विशेष महत्व है। परिसर के नक़्कारखाने के पास स्थित पुरातात्विक महत्व का संग्रहालय भी दर्शनीय है।महाराज राणा मदन सिंह द्वारा निर्मित झालावाड़ का गढ़ महल, शहर के मध्य में स्थित एक सुंदर स्मारक है। उनके उत्तराधिकारियों ने इन महलों में सुंदर चित्रों को अंकित करवाया गया, जिन्हें संग्रहालय अधिकारियों की अनुमति लेकर ही देखा जा सकता है। ज़नाना ख़ास या महिलाओं का महल में दोनों ओर दीवारों पर दर्पणों और उत्कृष्ट भित्तिचित्रों के अंकन हाड़ौती कला के प्रमुख उदाहरण हैं।

                                                गागरोन का किला


इतिहास बताता है कि इस किले में हजारों महिलाओं ने दुश्मनों से अपनी लाज बचाने के लिए जौहर कर लिया था। यहाँ के शासक ’अचलदास खींची’ जब मालवा के शासक होशंग शाह से हार गए थे तो यहाँ की राजपूत महिलाओं ने खुद को दुश्मनों से बचाने के लिए स्वयं को ज़िन्दा, अग्नि के हवाले कर दिया था। ’यूनेस्को’ की विश्व धरोहर स्थल सूची में सम्मिलित छह पहाड़ी किलों में से एक, पहाड़ी और जल क़िले का प्रतीक गागरोन किला राजस्थान की शान है। आहू, काली और सिंध नामक नदियों से घिरे इस किले की भव्य सुन्दरता को अपलक निहारने का मन करता है। किले के बाहर ’सूफी संत मिट्ठेशाह’ के मकबरे पर मोहर्रम के महीने में वार्षिक मेले का आयोजन होता है। गागरोन क़िले का निर्माण डोड राजा बीजलदेव ने 12वीं सदी में करवाया था। तीन नदियों का संगम देखने के लिए यहाँ पर्यटक आते हैं।

                                            राजकीय संग्रहालय


झालाओं की समृद्ध रियासत के सबूत इस संग्रहालय में मिलते हैं। 1915 ईस्वी में स्थापित झालावाड़ राजकीय संग्रहालय राजस्थान के सबसे प्राचीन संग्रहालयों में से एक है जहाँ दुर्लभ चित्रों, पांडुलिपियों और प्राचीन मूर्तिशिल्पों का नायाब संग्रह है।यह संग्रहालय झालावाड़ के महलों का ही एक भाग है। शहर के मध्य में स्थित एक प्राचीन स्थापत्य भवन होने के कारण यह पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र है।

                                                  भवानी नाट्यशाला


इसका निर्माण 1921 ई. में हुआ था। यह नाट्यशाला, कई यादगार नाटकों एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मूक गवाह है। माना जाता है कि सम्पूर्ण विश्व में ऐसी सिर्फ आठ नाट्यशालाएं हैं। शेक्सपियर के लिखे नाटक यहाँ खेले जाते थे। विदेशी पर्यटक इसे देखने में बड़ी रूचि रखते हैं।यह नाट्यशाला नाट्य और कला जगत में स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है इसमें घोड़ों और रथों के मंच पर प्रकट होने का रास्ता, एक भूमिगत मार्ग द्वारा बनाया गया है जो इसकी अनूठी विशेषता है।

                                                   सूर्य मंदिर




झालावाड़ का दूसरा जुड़वां शहर है झालरापाटन, जिसे ‘सिटी ऑफ बैल्स’ यानि घंटियों का शहर भी कहा जाता है। यहीं पर बना है सूर्य मंदिर। यहाँ पर बहुत से मंदिर होने के कारण सुबह शाम मंदिरों की घंटियों की स्वर लहरी सुनाई देती है। 10वीं शताब्दी में बना 17 फीट ऊँचा भगवान शिव को समर्पित सूर्य मंदिर, झालरापाटन के सर्वाधिक मनोहारी मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का शिखर पद्मनाभ या सूर्य मंदिर के रूप में लोकप्रिय उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मंदिर के समान उत्कीर्ण किया गया है।बनावट की दृष्टि से भी यह अनोखा है, जिसमें कुछ शिखरों का समूह मुख्य मण्डल द्वारा आपस में बंधा हुआ है। इस मंदिर का पुनरूद्धार पहली बार 16वीं सदी में और बाद में 19वीं शताब्दी में किया गया था। प्रवेश द्वार के चौखानों और मेहराबों पर देवी देवताओं और अन्य हिन्दू पौराणिक छवियों को बहुतायत से अंकित किया गया है। मंदिर की बाह्य दीवारों पर पुरानी पट्टिकाएं उत्कीर्ण हैं, जिन पर विष्णु और कृष्ण आदि देवताओं के चित्र बने हैं। यहाँ की आदमकद मूर्तियों को देखकर पर्यटक हतप्रभ रह जाते हैं।

                                                  चंद्रभागा मन्दिर



चन्द्रभागा नदी के किनारे पर बना यह मंदिर, झालावाड़ से 7 कि.मी. दूर है। शानदार चंद्रभागा मंदिर समूह, चंद्रभागा नदी के किनारे पर नक़्काशीदार स्तंभों और मेहराबदार द्वारों के साथ स्थित है।यह क्षेत्र 11वीं शताब्दी में झाला जालिम सिंह द्वारा बनाये गए श्री द्वारकाधीश मंदिर के लिए जाना जाता है। यहीं शांतिनाथ जैन मंदिर है, जिसमें सुंदर भित्ति चित्र और मूर्तियाँ हैं।


                                                            हर्बल गार्डन



अपने महत्वपूर्ण पेड़ पौधों के कारण यह हर्बल गार्डन बहुत प्रसिद्ध है। आयुर्वेदिक औषधियां बनाने के काम में लिए जाने वाले वरूण, लक्ष्मना, शतावरी, स्टीविया, रूद्राक्ष तथा सिंदूर जैसी विविध जड़ी बूटियों वाले पौधों के कारण यह हर्बल गार्डन बड़े काम का है।

                                                          द्वारकाधीश मंदिर


झालावाड़ शहर के संस्थापक झाला जालिम सिंह ने 1796 ई. में गोमती सागर झील के किनारे यह मंदिर बनवाया था
तथा सन् 1806 ई. में यहाँ भगवान कृष्ण की मूर्ति की स्थापना की गई थी।

                                      चाँदखेड़ी आदिनाथ मंदिर, खानपुर


17वीं शताब्दी के वास्तुशिल्प, वैभव और धार्मिक पवित्रता का साक्षी, प्रथम जैन तीर्थंकर (प्रवर्तक) आदिनाथ को समर्पित यह मंदिर खानपुर के पास चाँदखेड़ी में स्थित है।यहाँ छह फुट ऊँची भगवान् आदिनाथ की प्रतिमा विराजमान है। मंदिर क्षेत्र में पवित्र पारम्परिक भोजन और उचित आवास की सुविधा उपलब्ध है।

                       

                                                           दल्हनपुर


छापी नदी के तट पर सिंचाई बांध के समीप दल्हनपुर गाँव हैं। यहाँ 2 किलोमीटर के क्षेत्र में यत्र-तत्र फैले हुए प्राचीन मंदिर के अवशेष, बेजोड़ तराशे स्तम्भ, तोरण और श्रृंगारिक खण्ड दर्शनीय हैं।आस पास का घना वनक्षेत्र इस के आकर्षण को और भी अधिक रमणीय बनाता है।


                                        चाँदखेड़ी आदिनाथ मंदिर, खानपुर




17वीं शताब्दी के वास्तुशिल्प, वैभव और धार्मिक पवित्रता का साक्षी, प्रथम जैन तीर्थंकर (प्रवर्तक) आदिनाथ को समर्पित यह मंदिर खानपुर के पास चाँदखेड़ी में स्थित है।यहाँ छह फुट ऊँची भगवान् आदिनाथ की प्रतिमा विराजमान है। मंदिर क्षेत्र में पवित्र पारम्परिक भोजन और उचित आवास की सुविधा उपलब्ध है।

                                                    उन्हेल जैन मंदिर




यह जैन तीर्थ हैं जहाँ भगवान पार्श्वनाथ की हजार वर्ष पुरानी एक प्रतिमा है। जैन यात्रियों के लिए यह तीर्थ धार्मिक आस्था का केन्द्र है। यात्रियों हेतु लागत मूल्य पर व्यंजनों और समुचित आवास की व्यवस्था भी मंदिर क्षेत्र में है।

                                              बौद्ध गुफाएं और स्तूप




झालावाड़ में सबसे प्रसिद्ध, कोल्वी गाँव की प्राचीन बौद्ध गुफाएं हैं। गुफाओं में सबसे प्रभावशाली है बुद्ध की विशाल प्रतिमा और उत्कीर्णित स्तूप संरचना।झालावाड़ से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ये भारतीय कला के सर्वश्रेष्ठ जीवंत नमूने माने जाते हैं। पर्यटक, विनायक और हतियागौर गांवों के पास की गुफाओं का भी अवलोकन कर सकते हैं।



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